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    सनातन धर्म के आधार स्तम्भ

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    सनातन धर्म के आधार स्तम्भ

    ( वेद, ब्रहाण्ड और सृष्टि )
    सनातन धर्म- वैदिक शाश्वत,आदि अनादि अनंत सार्वभौमिक सत्य, ब्रह्म, ब्रह्मांड,आत्मा प्राण धर्म तथा ईश्वरीय ज्ञान, विज्ञान, सिद्धांत,व धर्म पथ प्रदर्शक संविधान - श्री वेद भगवान
    【वेदोऽखिलो धर्ममूलम् 】

    ||●ऋग्वेद●||

    ऋक अर्थात स्थिति और ज्ञान। इसमें भौगोलिक स्थिति, देवताओं के आवाहन के मंत्र, ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना,स्तुतियां, देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन,प्राकृतिक चिकित्सा (जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा,यज्ञ चिकित्सा का वर्णन ) उपवेद -आयुर्वेद - इसमें चार पुरुषार्थों में से एक धर्म का निरूपण किया गया है I

    ||●यजुर्वेद●||

    यजु,अर्थात गतिशील आकाश एवं ,ब्रह्म,ब्रह्माण्ड, ईश्वर, आत्मा,कर्म, यज्ञ विधान ,स्तुति,यंत्र,मंत्रों का निरूपण , पदार्थ विज्ञान,तत्व ज्ञान का विशद वर्णन हैI-उपवेद-धनुर्वेद- चार पुरुषार्थों में से एक मोक्ष विषयक ज्ञान का वर्णन किया गया है |

    ||●सामवेद●||

    साम का अर्थ रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। इसमें सविता, अग्नि और इन्द्र देवताओं के बारे में वर्णन किया गया है, शास्त्रीय नृत्य, संगीत शास्त्र का जनक माना जाता है। इसमें संगीत विज्ञान और मनोविज्ञान का वर्णन भी मिलता है। उपवेद-गंधर्ववेद-एवं चार पुरुषार्थों में से एक काम का वर्णन है , काम केवल भोग ही नहीं योग भी होता है |

    ||●अथर्वेद●||

    थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं,चमत्कारी जड़ी-बूटियों ( आयुर्वेद ), सनातन परंपरा,ज्योतिष विज्ञान का विशद वर्णन है।-उपवेद-स्थापत्य वेद-एवं चार पुरुषार्थों में से एक अर्थ पुरषार्थ का वर्णन है |

    ||ॐ||

    प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व अभी खोजा नहीं गया है और न ही मन की गति को मापा गया है ऋषि-मुनियों ने मन से भी अधिक गतिमान किंतु अविचल का साक्षात्कार किया और उसे 'वेद वाक्य' या 'ब्रह्म वाक्य' बना दिया। ।।ॐ।।

    "★ चार उपवेद :★-
    आयुर्वेदो धनुर्वेदो गांधर्वश्चेति ते त्रय:।
    स्थापत्यवेदमपरमुपवेदश्चतुर्विध:॥
    ◆आयुर्वेद - धन्वंतरि।
    ◆ धनुर्वेद - विश्वामित्र।
    ◆गांधर्ववेद-नारद मुनि।
    ◆स्थापत्यवेद - विश्वकर्मा हैं।


    ◆वेदांग ◆

    वेदांगों की संख्या छः हैं जिन्हें कभी-कभी छः शास्त्र कह दिया जाता है। यद्यपि व्यापक अर्थ में हम वेद पुराण आदि समस्त पवित्र ग्रन्थों को शास्त्र कह सकते हैं,इन्हें वेद भगवान के अंग भी कहा जाता है :
    ( छः वेदांग )(छः शास्त्र )- (छःदर्शन)
    * शिक्षा (घ्राण) - न्याय शास्त्र - गौतम ऋषि
    *कल्प हस्तौ) - वैशेषिक शास्त्र-महर्षि कणाद
    *व्याकरण (मुखं) - सांख्य शास्त्र -कपिल मुनि
    *निरुक्त (श्रौत्रम) - योग शास्त्र-ऋषि पतञ्जलि
    *छंद (पादौ) - (पूर्वी मीमांसा शास्त्र व जैमिनी
    दर्शन- श्री जैमिनी ऋषि) *ज्योतिष (चक्षु:)
    ( उत्तरी मीमांसा ,वेदांत शास्त - महर्षि वेदव्यास जी)

    ● उपनिषद●
    ( निकट बैठ कर सुना हुआ )
    उपनिषद क्या हैं : वेदों के अंतिम भाग को 'वेदांत' कहते हैं। वेदांतों को ही उपनिषद कहते हैं। उपनिषद में तत्व ज्ञान की चर्चा है। उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गए हैं:-
    ●ईशावास्योपनिषद ●केनोपनिषद ● कठोपनिषद ●प्रश्नोपनिषद ● मुण्डकोपनिषद ● माण्डूक्योपनिषद
    ●एतरेयोपनिषद ●तैत्तरीयोपनिषद ●श्वेताश्वतरोपनिषद
    ●बृहदारण्यकोपनिषद● छान्दोग्योपनिषद●कौषीतकी -उपनिषद

    ◆अट्ठारह पुराणों के नाम◆
    *ब्रह्म पुराण *पद्म पुराण *विष्णु पुराण
    *वायु पुराण *भागवत पुराण *नारद पुराण
    *मार्कंडेय पुराण *अग्नि पुराण *भविष्य पुराण
    *ब्रह्मवैवर्त पुराण *लिंग पुराण *वराह पुराण
    *स्कन्द पुराण *वामन पुराण *कूर्म पुराण
    *मत्स्य पुराण *गरुड़ पुराण *ब्रह्माण्ड पुराण

    ★ १८ पुराणों में ब्रह्म पुराण सबसे प्राचीन है ★

    इसके अतिरिक्त दो और महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं, जो महाकाव्य के रूप में हैं। इन्हें भारतीय इतिहास के प्रमुख व प्रामाणिक साहित्यिक ग्रंथ के रूप में स्वीकार किया जाता है। ये हैं- वाल्मिकी रामायण (आदिकाव्य महाभारत श्रीमद्भगवद्गीता(जय संहिता)

    १९६०८५३१२२वाँ वर्ष प्राचीन
    ★हमारा सनातन धर्म ★

    सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का गूढ़ ज्ञान समेटे हुए सनातन धर्म विश्व का सर्वप्रमुख और प्राचीनतम धर्म है। सनातन धर्म = शाश्वत , सत्य ,आदि, अनादि,अनंत, पुरातन ,नित्य, नूतन ,वैदिक, आत्म-धर्म, भागवत धर्म, स्वाभाविक धर्म ,प्राकृतिक ,वास्तविक धर्म ,सृष्टि धर्म (प्राणी धर्म) (सार्वभौमिक, सर्वकालिक,और सार्वजनिक)ये सब सनातन धर्म का ही नाम है।जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन, निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं, वेदों का ब्रह्म और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है, जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं, सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म) अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं।

    ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म है ,इसकी समस्त मान्यताएँ और परम्पराएँ पूर्णतः वैज्ञानिक हैं। वस्तुतः यह एक जीवन शैली है जो मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है। सत्य सनातन धर्म पथ के अद्भुत, अकल्पनीय, अद्वितीय ब्रह्ममय, वाङ्गमय मूर्ति स्वरूप चार वेद, उपवेद, वेदांग छ:शास्त्र, उपनिषद अट्ठारह पुराण ,महाकाव्य आदि विश्व भर में अद्वितीय,अनुकरणीय, आदरणीय है

    ★हिन्दू धर्म के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति क्रम ★:-
    एको$हम बहु:स्याम:
    तद अण्ड से पिण्ड, पिण्ड से ब्रह्मांड की उत्पत्ति शाश्वत ( है ) परमात्मा में हुये ‘प्रथम बोध’ और उसके तुरन्त बाद हुये स्वतः स्फ़ूर्त संकुचन “हुं” से उठी मूलमाया से उत्पन्न इन पञ्च महाभूतों में ही समस्त सृष्टि और समस्त जीव शरीरों की रचना हुयी , अनंत-महत्-अंधकार-आकाश-वायु-अग्नि-जल-पृथ्वी। अनंत जिसे आत्मा कहते हैं। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह प्रकृति के आठ तत्व हैं। सभी की उत्पत्ति आत्मा या ब्रह्म की उपस्थिति के कारण है।

    ★पञ्च महाभूत★
    ◆पृथ्वी◆ जल◆ अग्नि ◆वायु ◆आकाश
    (इन पञ्च महाभूतों की ५×५ = २५ प्रकृतियां भी इनके साथ ही उत्पन्न हो गयीं )
    आकाश की •काम •क्रोध• लोभ• मोह •भय
    वायु की • चलन• बलन• धावन•प्रसारण• संकुचन
    अग्नि की • क्षुधा •तृषा •आलस्य • निद्रा • मैथुन
    जल की •लार, रक्त •पसीना •मूत्र •वीर्य
    पृथ्वी की •अस्थि •चर्म •मांस • नाङी• रोम

    तत्वों के बाद “हं” स्वर से अंतःकरण ( सोऽहं ) उत्पन्न हुआ । तथा तीन गुण - • सतोगुण •रजोगुण •तमोगुण इसके बाद बहत्तर नाङियों के साथ फ़िर ज्ञानेन्द्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ अपनी तन्मात्राओं के साथ प्रकट हुयीं । इसके बाद सात सूत ( सप्त धातुयें ) - रस, रक्त, माँस, वसा, मज्जा, अस्थि और शुक्र..भी बने ।

    ◆अंत:करण - मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार ◆
    पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ - नासिका, जिह्वा, नेत्र, त्वचा, कर्ण ।
    पञ्च कर्मेन्द्रियाँ - पाद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक ।
    ( पाद - पैर, हस्त - हाथ, उपस्थ - शिश्न, पायु - गुदा, वाक - मुख )

    ★तीन शक्तियां★
    ●इच्छाशक्ति ●ज्ञानशक्ति ●क्रियाशक्ति
    ● पञ्च तन्मात्रायें ●
    • गन्ध, रस, रूप, स्पर्श, शब्द •
    -घ्राण, रसना, चक्षु, त्वक् तथा श्रोत्र
    गंध, रस, रूप, स्पर्श तथा शब्द की उपलब्धि अंतरिंद्रिय-मन के द्वारा होती हैं संकल्प ,विकल्पात्मक ,सुख- दु:खादि भीतरी विषय हैं। ये सब मन के द्वारा होता है। इंद्रियों की सत्ता का बोध प्रमाण, अनुमान से होता है•

    वायु तत्व से १० प्रकार की वायु :-
    ●प्राण ●अपान ●समान ●उदान ●व्यान ●नाग ● कूर्म ● कूकरत ●देवदत्त ● धनंजय की उत्पत्ति हुयी :-
    *प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान मुख्य हैं*

    ★पञ्च प्राण वायु ★
    (१) व्यान, (२) समान, (३) अपान,
    (४) उदान और (५) प्राण
    वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है। इनके कारण ही मन के विचार बदलते रहते या स्थिर रहते हैं :-

    व्यान
    व्यान का अर्थ जो चरबी तथा मांस का कार्य करती है।

    समान
    समान का अर्थ संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता भी है।

    अपान
    अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है।

    उदान
    उदान का अर्थ उपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायुतंत्र में होती है।

    प्राण
    प्राण वायु हमारे शरीर का हालचाल बताती है। यह वायु मूलत: खून में होती है।

    ★ सप्त चक्र ★
    ●सहस्त्रार चक्र●आज्ञा चक्र●विशुद्ध चक्र
    ●अनाहत चक्र ●मणिपुर चक्र ●स्वाधिष्ठान चक्र
    ●मूलाधार चक्र

    ★सप्त वायु ( सप्तप्रकार की वायु ) ★
    ●प्रवह, ●.आवह, ●.उद्वह, ●. संवह, ●.विवह,
    ●.परिवह और ●.परावह●

    प्रवह

    पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है,उसका नाम प्रवह है।यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणित हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं।

    आवह

    आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल गतिर्भूत है।

    उद्वह

    वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल गतिमान है।

    संवह

    वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।

    विवह

    पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता है।

    परिवह

    वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।

    परावह

    वायु की सातवी शाखा का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते है |

    सनातन धर्म सिद्धान्तों में सप्त धातुओं का बहुत महत्व है। इनसे शरीर का धारण होता है, इसी कारण से इन्हें 'धातु' कहा जाता है (धा = धारण करना)।

    ★ शारीरिक सप्तधातु ★
    रस, रक्त, मांस, मेद
    अस्थि, मज्जा, शुक्र

    आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य जो पदार्थ खाता है, उससे पहले द्रव स्वरूप एक सूक्ष्म सार बनता है, जो रस कहलाता है। इसका स्थान ह्वदय कहा गया है। यहाँ से यह धमनियों द्वारा सारे शरीर में फैलता है। यही रस तेज के साथ मिलकर पहले रक्त का रूप धारण करता है और तब उससे मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र आदि शेष धातुएँ बनती है।

    ★ ईश्वरीय सृष्टि ★
    देवसर्गश्चाष्टविधो विबुधा: पितरो$सुरा: |
    गन्धर्वाप्सरस: सिद्धा यक्षरक्षांसि चारणा:||
    भूतप्रेतपिशाचाश्च विद्याधरा किन्नरादय :|
    दशैते विदुराख्याता: सर्गास्ते विश्वध्रा:सृक्कृता:||

    ●देव● मानव ●दैत्य
    ● दानव ● राक्षस ●यक्ष ● गंधर्व
    ●भल्ल ●वसु ●अप्सराएं
    ● पिशाच ●सिद्ध ●मरुदगण ●किन्नर ●चारण
    ●भाट ●किरात ●रीछ ●नाग ●विद्याधर
    ● वानर ●पशु●पक्षी●वनस्पतियां
    ●जलचर● थलचर
    ●नभचर
    ●( उद्भिज अंडज ,जरायुज ,स्वेदज, ऊष्मज )●आदि
    =◆=
    ★तीन देव :-ब्रह्मा ● विष्णु ● महेश
    तीन देवियां:-●महा सरस्वती●महालक्ष्मी ●महाकाली
    ★ब्रह्मा के मानस पुत्र ★
    ●मन से मरीचि ● नेत्र से अत्रि ● मुख से अंगिरस
    ● कान से पुलस्त्य ●नाभि से पुलह
    ● हाथ से कृतु ●त्वचा से भृगु ●प्राण से वशिष्ठ
    ●अंगुष्ठ से दक्ष● छाया से कंदर्भ ●गोद से नारद
    ● इच्छा से सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार
    ●शरीर से स्वायंभुव मनु और शतरुपा
    ● ध्यान से चित्रगुप्त।

    ★विष्णु पुराण अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि★
    वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत।
    विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।
    * श्री वशिष्ठ * कश्यप * अत्रि *जमदग्नि,
    * गौतम *विश्वामित्र और भारद्वाज ऋषि *

    ★हिन्दुओं के ३३ कोटि (करोड़ नही ) ३३ प्रकार के देवता ★
    ३३कोटि देवी-देवताओं में आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल हैं। शास्त्रों में इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनी कुमारों को ३३कोटि देवताओं में शामिल किया गया है।

    अष्ट वसुओं के नाम-
    • आप •. ध्रुव •सोम •धर
    • अनिल • अनल •प्रत्यूष • प्रभाष

    ★ग्यारह रुद्रों के नाम- ★
    मनु ,मन्यु ,शिव ,महत , ऋतुध्वज , महिनस , उम्रतेरस , काल , वामदेव ,भव,धृत-ध्वज
    【 शम्भु, पिनाकी,गिरीश,स्थाणु, भर्ग, भव, सदाशिव, शिव, हर, शर्व , कपाली】

    ★ बारह आदित्य के नाम ★
    ● अंशुमान ● अर्यमन ● इंद्र ● त्वष्टा ●धातु ● पर्जन्य ● पूषा ●भग ● मित्र ● वरुण ●वैवस्वत ● विष्णु आदि

    ★मानव कर्म धर्म★
    ●संध्यावंदन ● व्रत(उपवास) ● तीर्थ सेवन
    ●उत्सवआयोजन ● दान ● सेवा ●संस्कार
    ●यज्ञ(हवन)●वेद पाठ●धर्म प्रचार

    सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

    विश्व प्रसिद्ध खाटूधाम में श्री खाटूनरेश श्री श्याम बाबा की प्रेरणा से रींगस रोड पर सनातन धर्म सेवा समिति "आध्यात्मिक सिद्धि साधना जन कल्याण केंद्र के रुप में उत्तर भारत का प्रथम "श्री स्वर्णाकर्षण शक्तिपीठ " के निर्माण कार्य में आप भी सहयोग कीजिए और सहयोग की प्रेरणा भी दीजिये ●जय सनातन, जय श्री राधे , जय श्री श्याम●

    * संस्थापक *
    आचार्य- भगवत् शरण भगवान जी महाराज
    भागवताचार्य,ज्योतिष ,वेदांत ,वास्तु व
    यज्ञानुष्ठानविद्