हमारा सनातन धर्म
शाश्वत , सत्य ,आदि, अनादि,अनंत, पुरातन ,नित्य, नूतन ,वैदिक, आत्म-धर्म, भागवत धर्म, स्वाभाविक धर्म ,प्राकृतिक ,वास्तविक धर्म ,सृष्टि धर्म (प्राणी धर्म) (सार्वभौमिक, सर्वकालिक,और सार्वजनिक)ये सब सनातन धर्म का ही नाम है। जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन, निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं, वेदों का ब्रह्म और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है, जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं, सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म) अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं।
ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म है ,
जीवत्व से शिवत्व की यात्रा
जीवात्मा से परमात्मा की यात्रा
अंश से अंशी की यात्रा
पतन से उत्थान की यात्रा
असत्य से सत्य की यात्रा
माया से ब्रह्म की यात्रा(जगत से जगदीश की यात्रा)
तमोगुण से सतोगुण की यात्रा (अंधकार से प्रकाश )
भक्त से भगवान की यात्रा
अशुभता से शुभता की यात्रा
मोह से मोक्ष की यात्रा
अनित्य से नित्य की यात्रा
देह से देही की यात्रा( स्व की यात्रा)
नश्वर से शाश्वत की यात्रा
"असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय,
मृत्योर्मा अमृतं गमय"
धार्यते इति धर्म:
धारण करना, धारक, धारणीय (धारण करने योग्य), धर्म का अर्थ होता है ''स्वभाव'' अर्थात् जिस वस्तु का जो आदि स्वभाव है, वही उसका धर्म है। धर्म का अर्थ है व्यक्ति को उसकी मूल स्थिति में लाना, स्वीकार करना I
श्री मनु जी महाराज के अनुसार
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।। (मनुस्मृति )
अर्थ – धर्म के दस लक्षण- धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना )
श्री याज्ञवल्क्यजी महाराज के अनुसार
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्।।
धर्म के नौ लक्षण- अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम), दया एवं शान्तिI
श्रीमद्भागवत के अनुसार
(धर्म के तीस लक्षण)
सत्यं दया तप: शौचं तितिक्षेक्षा शमो दम:।
अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्याग: स्वाध्याय आर्जवम्।।
संतोष: समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरम: शनै:।
नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्।।
अन्नाद्यादे संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हत:।
तेषात्मदेवताबुद्धि: सुतरां नृषु पाण्डव।।
श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गते:।
सेवेज्यावनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्।।
नृणामयं परो धर्म: सर्वेषां समुदाहृत:।
त्रिशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन तुष्यति।।
महात्मा विदुर के अनुसार
धर्म के आठ लक्षण - इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप,सत्य, दया, क्षमा और अलोभ। उनका कहना है कि इनमें से प्रथम चार इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है, किन्तु सत्य ,दया, क्षमा, अलोभ आदि अंगों का आचरण करने वाला महान बन जाता है।
पद्मपुराण के अनुसार
ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा च प्रवर्तते।
दानेन नियमेनापि क्षमा शौचेन वल्लभ।।
अहिंसया सुशांत्या च अस्तेयेनापि वर्तते।
एतैर्दशभिरगैस्तु धर्ममेव सुसूचयेत।।
अर्थात धर्म के दस लक्षण - ब्रह्मचर्य, सत्य, तप, दान, संयम, क्षमा, शौच, अहिंसा, शांति और अस्तेय इन दस अंगों से युक्त होने पर ही धर्म की वृद्धि होती है।
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।।
अर्थात :- सनातन धर्म ही सर्व सर्वस्व है , सनातन धर्म की महानता, व्यापकता,एवं सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण की मंगलमय भावना को पढ़िये, सुनिए ,समझिये और सुनकर अनुसरण कीजिये :-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
विश्व प्रसिद्ध खाटूधाम में श्री खाटूनरेश श्री श्याम बाबा की प्रेरणा से रींगस रोड पर सनातन धर्म सेवा समिति आध्यात्मिक सिद्धि साधना जन कल्याण केंद्र के रुप में उत्तर भारत का प्रथम "श्री स्वर्णाकर्षण शक्तिपीठ " के निर्माण कार्यों में आप सहयोग कीजिए और सहयोग की प्रेरणा भी दीजिये I
संस्थापक
आचार्य- भगवत् शरण भगवान जी महाराज
भागवताचार्य, ज्योतिष, वेदांत ,
वास्तु व
यज्ञानुष्ठानविद्