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    योगासन की महिमा



    सनातन धर्म ऋषि, मुनियों की परम्परा के अनुसार योगासन शरीरिक, मानसिक,आध्यात्मिक जगत की सहज साध्य और सर्व सुलभ व बिना साधन- सामग्री की व्यायाम पद्धति है जो कि मानव के लिए वरदान से कम नही है |

    योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं, शरीर के समस्त इस नाड़ी तंत्र को तथा मांसपेशियों को स्वस्थ, सबल, आकर्षक, व मन-मस्तिष्क को सक्रिय, ऊर्जावान एवं तरोताजा बनाती है , शरीर की समस्त ग्रन्थियां, पाचन तंत्र व अंग प्रत्यंगों को पुष्ट बनाती है, युवावस्था बनाये रखने और ओज, तेज, बल वीर्य की रक्षा में सहायक होती है | योगासन स्त्रि-पुरुषों के लिए विशेष रूप से सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के लिए उत्तम सहायक होते है ,योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी सद्प्रवृत्तियों की जागृति, आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते है |

    योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं मन में शांति,स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति की वृद्धि करते है |

    शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि योगासनों का समस्त अंगों पर प्रभाव पड़ता है, और रोग विकारों को नष्ट कर रोगों से रक्षा , शरीर कोनिरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।नेत्रों की ज्योति व शरीर के प्रत्येक अंगों का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। योगासन हमारे स्नायु तंत्र, श्वशन तंत्र से लेकर रक्तसंचार तंत्र तक की कार्यप्रणाली को व्यवस्थित व संचालित करते हैं, जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है | शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल वाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगासन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।

    *बैठ कर किये जाने वाले आसन *

    पद्मासन वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तनासन, जानुशिरासन, मंडूकासन, शशकासन आदि।

    * खडे होकर किये जाने वाले आसन *

    ताड़ासन, वृक्षासन, अर्धचंद्रमासन, अर्धचक्रासन, दोभुज कटिचक्रासन, चक्रासन, पाद्पश्चिमोत्तनासन, गरुढ़ासन, चंद्रनमस्कार, चंद्रासन, उर्ध्व उत्थान आसन, पाद संतुलन आसन, मेरुदंड वक्का आसन, अष्टावक्र आसन, बैठक आसन, उत्थान बैठक आसन, अंजनेय आसन, त्रिकोणासन, नटराज आसन, एक पाद विराम आसन, एकपाद आकर्षण आसन, उत्कटासन, उत्तानासन, कटी उत्तानासन, जानु आसन, उत्थान जानु आसन, हस्तपादांगुष्ठासन, पादांगुष्ठासन, ऊर्ध्वताड़ासन, पादांगुष्ठानासास्पर्शासन, कल्याण आसन आदि।

    * पीठ के बल लेट कर किये जाने वाले आसन *

    अर्धहलासन, हलासन, सर्वांगासन,पवनमुक्तासन, नौकासन, दीर्घ नौकासन, शवासन, पूर्ण सुप्त वज्रासन, सेतुबंध आसन, उत्तानपादासन, मर्कटासन, पाद चक्रासन आदि।

    * पेट के बल लेट कर किये जाने वाले आसन *

    मकरासन, धनुरासन, भुजंगासन, शलभासन, विपरीत नौकासन, खग आसन आदि। अन्य आसन : शीर्षासन, मयुरासन, सूर्य नमस्कार, वृश्चिकासन, चंद्र नमस्कार, योगनिद्रा, मार्जारी आसन, अश्व संचालन आसन, भुजपीड़ासन, चक्रासन , व्याघ्रासन आदि |

    योगासनों का मुख्य उद्येश्य :

    आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है। शरीर से मल या दूषित विकारों को नष्ट करना हो,शरीर की स्वस्थ्यता मन की स्थिरता आध्यात्मिक उन्नति के योग्य होना , शरीर मन और बुद्धि की सहायता से आत्मा-परमात्मा संबंध को जोड़ने का प्रयास करना |

    प्राणायाम



    देवो भूत्वा देवं यजेत

    अर्थात तन,मन की शुद्धि से ही देवत्व सिद्धि होती है |

    तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ (भगवान पतञ्जलि)

    अर्थात : जीवन दायिनी ब्रह्माण्डीय उर्जा को श्वास के रूप में ग्रहण करना , रोकना ( श्वास ऊर्जा को साधने का अभ्यास यानी ठहराव /नियंत्रण करना)और दुर्गुणों /विकारों का प्रश्वास के रूप में बाहर निकाल देना ही प्राणायाम है |

    शारीरिक ,मानसिक तथा आध्यात्मिक जीवन की साधना का नाम प्राणायाम I प्राणायाम अर्थात प्राण वायु के नियमन का अभ्यास I प्राणायाम अर्थात जीवन दायिनी ऊर्जा के विस्तार व ठहराव को जानना अथवा तो नियंत्रण की साधना प्राणायाम अर्थात शरीर व मन को जोड़ने की क्रिया |

    सरल भाषा में प्राणायाम तीन प्रकार की क्रिया का नाम है ,

    पूरक
    कुम्भक
    रेचक

    मन का संबंध वायु से ही तो है ,और प्राणायाम भी अतः प्राणायाम से मन बुद्धि सकारात्मक होती है | बाह्यवायोरन्त: * प्रवेशनं इति पूरकः * प्रवेशितस्य- धारणं कुम्भकः * धृतस्य बहिर्निस्सारणं रेचकः

    (महामुनि श्री याज्ञवल्क्य:)

    (१) पूरक - अर्थात श्वास को सप्रयास अन्दर खींचना।

    (२) कुम्भक - अर्थात श्वास को सप्रयास रोके रखना। कुम्भक दो प्रकार से संभव है

    (

    क) बर्हिःकुम्भक - अर्थात श्वास को बाहर निकालकर बाहर ही रोके रखना |

    (

    ख) अन्तःकुम्भक - अर्थात श्वास को अन्दर खींचकर श्वास को अन्दर ही रोके रखना |

    (३) रेचक - अर्थात श्वास को सप्रयास बाहर छोड़ना |

    किसी भी प्रकार का प्राणायाम करते समय तीन क्रियाएँ की जातीं हैं-पूरक, कुम्भक और रेचक | पूरक अर्थात भरना ,कुम्भक अर्थात रोक लेना रेचक अर्थात बाहर छोड़ना |

    पूरक प्राणायाम नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खींचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।

    रेचक प्राणायाम अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से बाहर छोडऩे की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे या तेजी से जब छोडऩे में लय व अनुपात जरूरी है।

    कुम्भक प्राणायाम श्वास को भर लेने के बाद क्षमता अनुसार रोक कर रखना कुम्भक कहलाता है | कुम्भक दो प्रकार का होता है- आन्तरिक कुम्भक और वाह्य कुम्भक | श्वास को अन्दर रोकने की क्रिया को आन्तरिक कुम्भक तथा श्वास को बाहर रोकने की क्रिया को बाहरी कुम्भक कहते हैं।

    आन्तरिक कुम्भक - इसके अन्तर्गत नाक के छिद्रों से वायु को अन्दर खींचकर जितनी देर तक श्वास को रोककर रखना सम्भव हो, उतनी देर रखा जाता है और फिर धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोड़ दिया जाता है |

    वाह्य कुम्भक - इसके अन्तर्गत वायु को बाहर छोड़कर जितनी देर तक श्वास को रोककर रखना सम्भव हो, रोककर रखा जाता है और फिर धीरे-धीरे श्वास को अन्दर खींच लिया जाता है |

    सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें। प्राणायाम की शुरुआत और समापन हमेशा बांयी नाक से ही करनी है, नाक का दांया अंगूठे से नथुना बंद करें व बांये से लंबी सांस लें(भरे), फिर बांयी नाक को अनामिका व कनिष्ठिका अंगुलियों से बंद रख कर श्वाश को जितना रोक सकते है उतना रोके इसके बाद अंगूठे को धीरे ढीला छोड़ कर धीरे धीरे श्वास को बाहर छोड़े..( इस प्रकार ये एक प्राणायाम हुआ)I अब दांया से लंबी सांस लें व बांये वाले से छोडें...इस प्रकार से दांया- बांया , बांया-दांया क्रम जारी रखते हुए यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं, (ये हुआ अनुलोमविलोम) श्वाश लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच में स्थित आज्ञा चक्र पर केंद्रित करना चाहिए। और मन ही मन में सांस लेते समय ॐ कार अथवा गायित्री मंत्र :- (ॐ भूः भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यं ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ) का जाप करते रहना चाहिए। श्वाश बाहर छोड़ते समय सोचना चाहिए कि अंदर के सभी विकार बाहर निकल रहे हैं | प्राणायाम से हमारे शरीर के सभी अंग प्रत्यंग व समस्त सूक्ष्म से सूक्ष्म नस नाड़ियां शुद्ध हो जाती है |योग व्यायाम के अनेक चमत्कारी प्राणायाम है जिनसे शरीर के समस्त रोगों का समाधान होता हैं, और उत्तम स्वास्थ्य का लाभ मिलता है |

    अनुलोम-विलोम प्राणायाम के लाभ

    हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्माति सूक्ष्म नस,नाड़ीयां शुद्ध हो जाती है, हार्ट की ब्लाकेज, रक्त -चाप,रह्यूमेटोइड आर्थराइटिस, कार्टीलेज, लिगामेंट्स,वैरीकोस वेन्स ,कोलेस्ट्रोल , टाँक्सिन्स, सायकिक पेंशेन्ट्स,किडनी की समस्या, सबसे बड़ा खतरनाक कैन्सर तक ठीक हो जाता है।किसी भी प्रकार की एलर्जी,सर्दी,खाँसी,नाक,गला ,ब्रेन ट्यूमर,सभी प्रकार के चर्म रोग,मस्तिष्क सम्बधित सभी व्याधियां तथा सायनस, टॉन्सिल्स ,पार्किनसन्स, पैरालिसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बधित सभी व्याधिओं तथा डायबीटीज़ पूरी तरह खत्म हो जाती है।

    कपालभाति प्राणायाम

    सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें और साँस को बाहर फैंकते समय पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना है, इसमें सिर्फ साँस को छोड़ते रहना है। दो साँसों के बीच अपने आप साँस अन्दर चली जायेगी, जान-बूझ कर साँस को अन्दर नहीं लेना है। कपाल कहते है मस्तिष्क के अग्र भाग को, भाती कहते है ज्योति को, कान्ति को, तेज को; कपालभाति प्राणायाम लगातार करने से चेहरे का लावण्य बढ़ता है। कपालभाति प्राणायाम धरती की संजीवनी कहलाता है। कपालभाती प्राणायाम करते समय मूलाधार चक्र पर ध्यान केन्द्रित करना होता है। इससे मूलाधार चक्र जाग्रत हो कर कुन्डलिनी शक्ति जाग्रत होने में मदद होती है। कपालभाति प्राणायाम करते समय ऐसा सोचना है कि, हमारे शरीर के सारे नकारात्मक तत्व शरीर से बाहर जा रहे हैं। खाना मिले ना मिले मगर रोज दृढ़ संकल्प के साथ कम से कम ५ मिनिट कपालभाति प्राणायाम करना ही है| विशेष :-कपालभाति प्राणायाम के बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम अवश्य करें।ऐसा करने से कपालभाति प्राणायाम के लाभ और बढ जाते हैं |

    कपालभाति प्राणायाम के लाभ

    बालों की सभी समस्याएं,चेहरे की झुरियाँ,आँखों की रोशनी से लेकर सभी प्रकार की समस्याऐं ,थायराॅइड की समस्या,चर्मरोग पायरिया,दाँतों की सभी प्रकार की समस्याऐंमिट जाती हैं ,शरीर की बढ़ी हुई चर्बी ,कब्ज, ऐसिडिटी,गैस्टि्क जैसी पेट की सभी समस्याएँ, और महिलाओं की गर्भाशय संबंधित सभी समस्याए ,तथा डायबिटीज़, कोलेस्ट्रोल ,सभी प्रकार की एलर्जी,सबसे खतरनाक कैन्सर रोग तक ठीक हो जाता है।शरीर में स्वतः हीमोग्लोबिन ,कैल्शियम तैयार होता है। किडनी स्वतः स्वच्छ व सबल बनती है |

    भस्त्रिका प्राणायाम

    किसी भी शांत वातावरण में सिद्धासन, वज्रासन या पद्मासन में बैठकर अपनी गर्दन, शरीर और सिर को सीधा रखें,इसके बाद अपनी आंखें बंद करें और थोड़ी देर के लिए अपने शरीर को शिथिल कर, अपना मुंह बंद कर लें। योग शुरू करने से पहले अपने नथूनों को भी अच्छी तरह साफ कर लें।अपने हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखते हुए धीरे-धीरे सांस खींचते हुए अपनी सांस को बलपूर्वक छोड़ दें।अब अपनी सांस बलपूर्वक खींचे और वैसे ही उसे छोड़ें , भस्त्रिका प्राणायाम करते वक्त धौंकनी की तरह आपको अपनी छाती को फुलाना और पिचकाना है। नाक से लंबी साँस फेफडों में ही भरें और फेफडोॆ से ही छोडें| साँस लेते और छोडते समय एक सा दबाव बना रहे। हमें पूरी साँस लेनी है और ध्यान रखना है कि साँस पेट में नही भरनी है , फेंफड़ों से ही लेनी और छोडनी है |

    इस प्राणायाम का अभ्यास तीन अलग सांस दरों से किया जा सकता है। पहला धीमी जिसमें आप २ सेकंड में १ सांस लेंगे, दूसरा मध्यम जिसमें आप १ सेकंड में १ सांस लेंगे और तीसरा तेज जिसमें आप १ सेकंड में २ सांस लेंगे। आप शुरुआत धीमी गति से करें और रोजाना लगभग इस प्रक्रिया को ४ -५ बार दोहराएं ,इसके बाद जैसे-जैसे आपको आदत हो आप इसे बढ़ा सकते हैं |

    नोट :- भस्त्रिका प्राणायाम कुशल योग गुरु की सलाह से ही करें |

    भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ

    हमारा हृदय , फेफड़ों को सशक्त बनाने के लिये मस्तिष्क से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये तथा पार्किनसन, पैरालिसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटाने के लिये।सांसों पर ही हमारा जीवन निर्भर करता है। ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से हमारे शरीर में बीमारियां जन्म लेने लगती हैं। भस्त्रिका प्राणायाम फेफड़ों के साथ आंख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए भी लाभदायक है। इस प्राणायाम से पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की भी कसरत हो जाती है। साथ ही मोटापा, दमा, टीबी और सांसों से जुड़े रोग दूर हो जाते हैं। मसल से जुड़े किसी भी रोग में भी भस्त्रिका प्राणायाम को लाभकारी माना गया है। भस्त्रिका प्राणायाम से शरीर के सभी अंगों में रक्त संचार भी सही ढंग से होता है | अनेक दिव्य चमत्कारी प्राणायाम है जो शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक सिद्धि साधनाओं को देने वाले हैं स्वर ही प्राण है, स्वर ही ब्रह्म है, स्वर साधना ही लौकिक-पारलौकिक सुखों को देने वाला है ,अतः प्रतिदिन पांच प्राणायाम अवश्य करने का नियम बनाये