हमारे सनातन हिन्दू धर्म में चारो युगों में मनुष्य की आयु और लंबाई ,तीर्थ व पाप-पुण्यों का औसतन वर्णन
१- सत्ययुग:-
मनुष्य की आयु-१००००० वर्ष
मनुष्य की ऊँचाई-३२ फ़ीट (२१ हाथ)
सतयुग में प्रमुख तीर्थ - पुष्कर जी
पुण्य का प्रतिशत १००℅
२- त्रेतायुग:-
मनुष्य की आयु-१०००० वर्ष
मनुष्य की ऊँचाई-२१ फ़ीट (१४ हाथ)
त्रेतायुग में प्रमुख तीर्थ -नैमिषारण्य
पुण्य का प्रतिशत -७५%
पाप का प्रतिशत २५%
३- द्वापरयुग:-
मनुष्य की आयु-१००० वर्ष
मनुष्य की ऊँचाई-११ फ़ीट (७ हाथ)
प्रमुख तीर्थ -कुरुक्षेत्र
पुण्य का प्रतिशत -५०%
पाप का प्रतिशत -५०%
४- कलियुग:-
मनुष्य की आयु-१०० वर्ष
मनुष्य की ऊँचाई-५.५ फ़ीट (३.५ हाथ)
प्रमुख तीर्थ -श्री गंगा जी
पुण्य का प्रतिशत २५%
पाप का प्रतिशत -७५%
तीन काल
●भूतकाल
● वर्तमानकाल
●भविष्य काल
बारह माह का एक चक्र = वर्ष ( संवत्सर)
दो अयन
उत्तरायण और दक्षिणायण
छ: ॠतुएं
●शीत
●ग्रीष्म
● वर्षा
● शरद
● बसंत
● शिशिर
महीनों के नाम
●चैत्र माह
●वैशाख
●ज्येष्ठ
●आषाढ़
●श्रावण
●भाद्रपद
● आश्विन
●कार्तिक
●मार्गशीर्ष
●पौष
●माघ
●फाल्गुन
दो पक्ष(पखवाड़ा)
कृष्ण पक्ष
शुक्ल पक्ष
【१५ दिन का पखवाड़ा (पक्ष)】
प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तिथि तक कृष्ण पक्ष
प्रतिपदा तिथि से पूर्णिमा तिथि तक शुक्ल पक्ष
तिथियों के नाम
*प्रतिपदा (एकम, पड़वा) *द्वितीया (दूज) *तृतीया
*चतुर्थी *पञ्चमी *षष्ठी *सप्तमी *अष्टमी *नवमी
*दशमी *एकादशी *द्वादशी *त्रयोदशी *चतुर्दशी
तथा पूर्णिमा और अमावस्या
सात वारों के नाम
(सात दिनों का एक सप्ताह)
●रविवार ●चंद्र(सोमवार) ●भौम(मंगलवार)
●बुधवार ●गुरु(बृहस्पतिवार)●शुक्रवार●शनिवार
【एक वर्ष में ५२ सप्ताह ३६५ दिन】
आठ प्रहर के नाम : दिन के चार प्रहर
●पूर्वान्ह●मध्यान्ह●अपरान्ह ●सायंकाल
रात के चार प्रहर
● प्रदोष●निशिथ●त्रियामा●उषा
【एक साल में ८७६० घंटे और ५२५६००मिनट ,तथा ३१५३६००० सेकंड 】
चंद्रमा पृथ्वी की पूरी परिक्रमा २७.३दिनों में करता है और ३६० डिग्री की इस परिक्रमा के दौरान सितारों के २७ समूहों के बीच से गुजरता है। चंद्रमा का हर एक राशिचक्र २७ नक्षत्रों में विभाजित है। चंद्रमा और सितारों के समूहों के इसी तालमेल और संयोग को नक्षत्र कहा जाता है।
अश्विनी नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, अश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र,और अभिजित नक्षत्र आदि।
घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती) होते हैं, उन्हें पंचक कहते हैं। इस दौरान आग लगने का खतरा होता है, इस दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, घर की छत नहीं बनवानी चाहिए, लकड़ी की खरीद या पलंग या कोई ,फर्नीचर भी नहीं बनवाना चाहिए। पंचक में अंतिम संस्कार भी वर्जित है।
मूल नक्षत्र के तहत आने वाले अश्विनि, अश्लेषा, मघा, मूल और रेवती नक्षत्रों को उग्र श्रेणी का माना जाता है। इन्हें ही मूल, गंडात या सतैसा भी कहा जाता है।
बारह राशियाँ
●मेष राशि ●बृषभ ●मिथुन ●कर्क ●सिंह ●कन्या
● तुला ●वृश्चिक ●धनु ●मकर ●कुम्भ ●मीन
नवग्रह
●सुर्य ● चन्द्रमा ● मंगल ● बुध ● बृहस्पति
● शुक्र● शनि ●राहु ●केतु
नवरत्न
●हीरा ●पन्ना ● मोती ●माणिक ●मूंगा
●पुखराज ●नीलम ●गोमेद● लहसुनिया
अष्ट- धातु
●सोना ● चांदी ●तांबा ● सीसा ●जस्ता
● टिन ●लोहा ●पारा
पंचदेव
●गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य प्रधान हैं, उन्हीं के अंतर्गत सब देवता माने गए है ●
मंत्रों के प्रकार
●वैदिक मंत्र ●तांत्रिक मंत्र ● शाबर मंत्र
दो पूजा
●वैदिकी ●तांत्रिकी (पुराणोक्त)
जप के प्रकार
●वाचिक जप (उच्चारण) ●मानसिक जप (मन में)
●उपांशु जप ( जीभ व होठ का हिलना)
पांच पूजा उपचार
●गंध ●पुष्प ●धूप ●दीप● नैवेद्य
पंचामृत
● दूध ● दही ● घी ● शहद ●शक्कर
पूजा के फूल
●आंकड़ा ●गेंदा ● पारिजात ● चंपा ●कमल● गुलाब
●चमेली ●गुड़हल ● कनेर ● रजनीगंधा
पञ्च पल्लव(पत्ते)
●आम ●अशोक ●बरगद ●पीपल ●गुलर
सप्त मृतिका
•गौशाला •घुड़साल •हाथीसाल • राजद्वार
•बाम्बी की मिट्टी•नदी संगम•तालाब की मिट्टी
सप्त रंग
( इंद्रधनुष के रंग)
●बैंगनी●जामुनी ●नीला ●हरा● पीला●नारंगी●लाल
सप्त-धान्य
●गेहूं ●चना ●चांवल ●जौ ●मूंग ●उड़द ●बाजरा
तीन स्थिति
●ठोस ● द्रव ●गैस
तीन स्तर
● प्रारंभ ● मध्य ●अंत
मानव अवस्थायें
●जागृत ●स्वप्न ●सुषुप्ति /मूर्छित ●मृत
चार वर्ण
● ब्राह्मण● क्षत्रिय● वैश्य ●शूद्र
चार आश्रम
●ब्रह्मचर्य ●गृहस्थ ●वानप्रस्थ●सन्यास
चार पुरुषार्थ
● धर्म ●अर्थ ● काम ●मोक्ष
चार नीतियां
●साम ●दाम ●दंड ●भेद
चार स्त्री
●माता ●पत्नी ●बहन●पुत्री
चार प्रकार की प्रलय
● नित्य प्रलय ● नैमित्तिक प्रलय
● प्राकृतिक प्रलय ● आत्यन्तिक प्रलय
चार प्रकार के भोज्य
● खाद्य ●पेय ●लेह्य ●चोष्य
छः प्रकार के स्वाद (रस)
● मीठा ●खट्टा ●चटपटा ●खारा ●कड़वा ●कसैला
स्थायी मनोभाव
●रति(तृप्ति) ●हास (प्रसन्नता,हर्ष) ● शोक ● क्रोध
●उत्साह ●भय ●जुगुप्सा(घृणा,निंदा)●निर्वेद(ग्लानि)
●विस्मय(आश्चर्य)
राग रस
●श्रृंगार रस ●हास्य रस ●शांत रस ●वीर रस
●रौद्र रस ●भयानक रस ●करुण रस
छंद वेदों के मंत्रों में प्रयुक्त कवित्त मापों को कहा जाता है। श्लोकों में मात्राओं की संख्या और उनके लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों के समूहों को छंद कहते हैं - वेदों में कम से कम १५ प्रकार के छंद प्रयुक्त हुए हैं। गायत्री छंद इनमें सबसे प्रसिद्ध है जिसके नाम ही एक मंत्र का नाम गायत्री मंत्र पड़ा है।
●श्री गायित्री छंद ●बृहती छंद ● उष्णक छंद
● जगती छंद ●त्रिष्टुप छंद●अनुष्टुप छंद
अन्य छन्दों के प्रकार :-
●एकपदा विराट छंद,द्विपदा विराट छंद, धृति छंद,
प्रगाथा छंद, महाबृहती छंद, शक्वरी छंद, जगती छंद, विराट छंद, गायत्री छंद, अतिशक्वरी छंद, अति जगती -छंद,अष्टि छंद अत्यष्टि छंद आदि |
चार वाद्य
◆तत्त ◆सुषिर ◆अवनद्व ◆ घन
सात स्वर
सा, रे, ग, म, प, ध, नि
षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद
दस ध्वनियां
●घंटी ●शंख ●बांसुरी ●वीणा ●मंजीरा
●करतल ●बीन (पुंगी) ●ढोल
●नगाड़ा ●मृदंग
●उबटन लगाना● स्नान करना● स्वच्छ वस्त्र धारण करना ●मांग भरना ●महावर लगाना● बाल संवारना
●तिलक लगाना ●ठोढी़ पर तिल बनाना ●आभूषण धारण करना ●मेंहदी रचाना ●दांतों में मिस्सी●आंखों में
काजल लगाना ●इत्र लगाना● माला पहनना ●नीला कमल धारण करना।
गर्भाधान * पुंसवन *सीमन्तोन्नयन जातकर्म*
*नामकरण * निष्क्रमण *अन्नप्राशन * मुंडन
*कर्णवेध *उपनयन *विद्यारंभ *केशांत
*समावर्तन * विवाह *विवाहाग्नि
अंत्येष्टि संस्कार
●संध्यावंदन ● व्रत(उपवास) ● तीर्थ सेवन
●उत्सवआयोजन ● दान ● सेवा ●संस्कार
●यज्ञ(हवन)●वेद पाठ●धर्म प्रचार
विश्व प्रसिद्ध खाटूधाम में श्री खाटूनरेश ,श्री श्याम बाबा की प्रेरणा से रींगस रोड पर सनातन धर्म सेवा समिति "आध्यात्मिक सिद्धि साधना जन कल्याण केंद्र के रुप में उत्तर भारत का प्रथम "श्री स्वर्णाकर्षण शक्तिपीठ " के निर्माण कार्य में आप भी सहयोग कीजिए और सहयोग की प्रेरणा भी दीजिये * जय सनातन, जय श्री राधे , जय श्री श्याम
आचार्य- भगवत् शरण भगवान जी महाराज
भागवताचार्य,ज्योतिष ,वेदांत ,वास्तु व
यज्ञानुष्ठानविद्