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    || श्री स्वर्णाकर्षण ऐश्वर्य ईश्वर ||

     
     

    पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम् ।
    अक्षयं स्वर्ण-माणिक्यं तडित-पूरित पात्रकम्।।

    अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्।
    सर्वाभरणसमपन्नं, मुक्ताहारोपशोभितम|

    मदोन्मत्तं सुखासीनं भक्तानां च वर प्रदम ।
    सततं चिन्तयेद्-देवं भैरवं सर्व-सिद्धि दम्।|

    ॐ पारिजात द्रुमकांतार स्थिते मणिमण्डपे I
    सिंहासनगतं ध्यायेद भैरवं स्वर्णदायकं ||

    समस्त प्रकार की सुख संपत्ति धन वैभव व ऐश्वर्य के देने वाले , दिव्य धाम मणिद्वीप के कोषाध्यक्ष श्री महादेव के पञ्चम अवतार श्री स्वर्णाकर्षण भैरव श्री कुबेर व श्री महालक्ष्मी जी के भंडार को भरने वाले,अष्ट सिद्धि व नवनिधियों के दाता, दुःख दरिद्रता को दूर कर सुख -सौभाग्य देने वाले ब्रह्म,विष्णु ,शिव स्वरूप त्रिनेत्रधारी, पीतवर्ण, स्वर्णजटित वस्त्राभूषणों से अलंकृत ,अपने भक्तों को चारों हाथों से धन वैभव लुटाते रहते हैं ,ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव भगवान की चरण शरण ग्रहण करने से भक्तों को अक्षय सुख व अचल धन समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है |

    श्री स्वर्णाकर्षण भैरव जी इनकी चर्चा रूद्र यामल तन्त्र में शिव जी और नन्दी जी के बीच हुई थी। 100 वर्षो तक देवासुर संग्राम में युद्ध के कारण कुबेर जी को जब धन की भारी हानि हुई थी। उस समय श्री लक्ष्मी जी भी धनहीन हो गयी थी। उस समय समस्त देवी, देवता भगवान महादेव जी की शरण में गए थे ,तब सभी देवताओ सहित नन्दी जी ने यक्षराज श्री कुबेर जी को धनवान बनाने के लिये शिव जी से प्रश्न किया कि कुबेर के खाली को भण्डार फिर से भर दे ऐसे कौन भगवान है तब भगवान शिव जी ने भगवती के दिव्य अविनाशी धाम " श्री मणिद्वीप के कोक्षाध्यक्ष श्री स्वर्णाकर्षण भैरवनाथ भगवान" की महिमा और उनके वैभव का वर्णन किया और उनकी शरण में जाने को कहा था | तब सभी देवी देवताओं ने श्री लक्ष्मी जी व कुबेर जी के साथ विशालातीर्थ (बद्रीविशाल धाम में) हज़ारों वर्षो तक भीषण तप किया तब भगवान श्री स्वर्णाकर्षण भैरवनाथ अपने हाथों में स्वर्ण -माणिक्य से भरे हुए पात्र ,डमरू, महाशूल ,चामर,तोमर धारण किये हुए श्री मणिद्वीप धाम से प्रगट होकर दर्शन दिए और चारों भुजाओ से धन की वर्षा की जिससे पुनः सभी देवता श्री सम्पन्न हो गए। "ब्रह्म विष्णु शिवस्वरूप श्री स्वर्णाकर्षण ऐश्वर्य ईश्वर " इनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है।ये हमेशा मणिद्वीप (पाताल) में रहते हैं, इनकी साधना से अष्ट- दारिद्र्य समाप्त हो जाता है। जो साधक इनकी साधना करता है,उसके जीवन में कभी आर्थिक हानी नही होती सर्वत्र आर्थिक लाभ देखने को मिलता है।

    प्राचीन काल में अजामल नामक महा भयंकर असुर ने समस्त लोकों को पाप रुपी महा अंधकार से आच्छादित कर दिया , सृष्टि की सारी गतिविधि रुक गयी सभी ग्रह-नक्षत्र एक दूसरे से टकराने लगे, लग रहा था कि समस्त ब्रह्मांड महाशून्य मैं समा जाएगा तब भगवान शिव ने अंधकार के विनाशक , स्वर्णप्रकाश के स्वामी श्री स्वर्णेश्वर भगवान का स्मरण किया , श्री स्वर्णाकर्षण भैरव नाथ ने अजामल नामक महाअसुर का वध किया जिससे सारी सृष्टि पुनः गतिर्भूत हुई |सभी देवी देवता जय जयकार करने लगे ||